बारिश कमी – क्या कारण हैं और कैसे कम किया जाए?

जब हम बारिश कमी, एक ऐसी स्थिति जहाँ वार्षिक वर्षा अपेक्षित मात्रा से काफी कम रहती है की बात करते हैं, तो तुरंत कई सवाल दिमाग में आते हैं: कौन‑से क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, और इस समस्या का समाधान क्या है? सरल शब्दों में, बारिश कमी का मतलब है कि जल‑संकट की संभावना बढ़ती है, फसलों की पैदावार घटती है और रोज़मर्रा की ज़िंदगियों में बदलाव आ जाता है। यही कारण है कि मौसम विज्ञान, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान और कृषि, खाद्य एवं फाइबर उत्पादन की मुख्य गतिविधि इस मुद्दे के प्रमुख खिलाड़ी बनते हैं। साथ ही, जल संसाधन, सभी उपयोगी पानी की उपलब्धता और प्रबंधन का संतुलन बिगड़ने से सामाजिक‑आर्थिक तनाव बढ़ता है।

बारिश कमी के पीछे मुख्य कारणों में जलवायु परिवर्तन प्रमुख है। उत्सर्जन बढ़ने से वायुमंडल में गर्मी बढ़ती है, जिससे वायुदाब के पैटर्न बदलते हैं और वर्षा के गठन में बाधा आती है। दूसरा कारण है स्थानीय वनों की कटाई—पेड़ पानी को वाष्पीकरण कर वायुमंडल में लौटाते हैं, इसलिए उनका अभाव बारिश की लहरों को कम कर देता है। तीसरा कारण है असमर्थ जल संचयन प्रबंधन—अगर जल को सही ढंग से संग्रहित नहीं किया जाए तो मौसमी जलविस्फोट के बावजूद भी भूमि पर पानी नहीं पहुँच पाता। इन तीन कारणों के कारण बारिश कमी कृषि उत्पादन, जल‑अधारित उद्योग और यहाँ तक कि रोज़मर्रा के सामान की कीमतों पर भी असर डालता है, जैसा कि मिल्क की कीमतों में कमी से जुड़ी सरकारी नीतियों में देखा गया है।

बारिश कमी के असर और सम्भावित कदम

पहला असर है फसल‑उत्पादन में गिरावट। जब बरसाती मौसम छोटा या अनियमित होता है, तो धान, गेंहू, और सब्ज़ियों की पैदावार घटती है, जिससे बाजार में कीमतें बढ़ती हैं और किसानों की आय घटती है। दूसरा असर है जल‑स्रोतों का सूखना—नदी, तालाब और भू‑जल स्तर गिरते हैं, जिससे पेय जल की उपलब्धता प्रभावित होती है। तीसरा प्रभाव है सामाजिक‑आर्थिक असमानता—शहरी क्षेत्रों में जल‑टैंकों की कमी से दैनिक जीवन कठिन हो जाता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में सूखे का सामना अधिक होता है। इसे सुधारने के लिये तीन व्यावहारिक उपाय हैं: 1) वॉटर हार्वेस्टिंग तकनीक को बढ़ावा देना—घरों और खेतों में बारिश का पानी एकत्रित कर रेजनरेट करना। 2) पर्यावरणीय पुनर्स्थापना—वनों की नवीनीकरण और जल‑संरक्षण उपायों को अपनाना। 3) स्मार्ट मौसम‑पूर्वानुमान—मौसम विज्ञान के सेंसर और डेटा‑एनालिटिक्स से किसानों को सटीक बुवाई‑समय बताना। इन कदमों से न सिर्फ जल‑संकट घटेगा, बल्कि कृषि उत्पादन में स्थिरता आएगी। पिछले कुछ महीनों में, कई समाचार में दिखा कि सरकार ने मिल्क की कीमतों में कमी की घोषणा की, जिसका सीधा कारण जल‑संसाधनों की कीमत में गिरावट था। इसी तरह, बीमारियों के प्रकोप, खेल‑इवेंट्स की तैयारी, और यहाँ तक कि फिल्मी इवेंट्स के शेड्यूल भी मौसम‑परिवर्तन से जुड़े होते हैं। इसका मतलब है कि बारिश कमी का प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में दिखता है – चाहे वह क्रिकेट डिनर पार्टी हो या टेनिस टूर्नामेंट। इसलिए, इस टैग पेज में हम विभिन्न लेखों को एक साथ लेकर आए हैं, जो बारिश कमी के विविध पहलुओं को समझाते हैं। अगले सेक्शन में आपको मौसम‑विज्ञान की नवीनतम रिपोर्ट, कृषि‑संबंधी समाधान, जल‑प्रबंधन केस‑स्टडी और अन्य रोचक सामग्री मिलेंगी, जो इस व्यापक मुद्दे को विभिन्न दृष्टिकोण से देखती हैं।

चेन्नई में अगस्त 2023 में बारिश घट – मात्र 9.1 मिमी, औसत 132.8 मिमी
अमरेंद्र भटनागर 21 अक्तूबर 2025

चेन्नई में अगस्त 2023 में बारिश घट – मात्र 9.1 मिमी, औसत 132.8 मिमी

चेन्नई में अगस्त 2023 की बारिश केवल 9.1 मिमी रही, जबकि औसत 132.8 मिमी है। स्काइमेट के महेश पल्लावत ने दो‑तीन दिन हल्की बारिश की आशा जताई, पर फिर सूखा फिर से पकड़ने की चेतावनी दी।

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